- हक्कासाठी आंदोलन
"मजूर वास्तव"
"मजूर वास्तव"
- संतोष खिल्लारे
शहरो में घर बनवाये वहा रहनेको न दिया।
जंहा रोड बनवाये उसपर चलने न दिया ।
कभी डंडे तो कभी भूक की मार।
झूठे सपने दिखाकर वोट हमसे जो लिया।
जब चाहिए तब इस्तेमाल किया।
जब तुम्हारी बारी आई तो मुकर लिया ।
कहते थे हवाई चपल से नहीं हवाई जहाज से सफर करवायेंगे ।
हवाई सफर तो नहीं करवाया कमसे कम ट्रैन से ही छोड़ देते।
हम तो नहीं चाहते थे तुमहारा बस और तुमाहरी ट्रैन ।
हम तो चले थे पैदल मगर तुमने तो ट्रैन के निचे ही कुचल दिया।
किसी की माँ किसी का बेटा रस्ते पे नज़र गड़े है।
कब आयेंगा मेरा बेटा ! कब आएगा मेरा पिता !
क्या जवाब देंगे ? कोण जवाब देगा उनको?
तुम्ही ने तो कहा था विकास आएगा।
कहा है ओ। रेल्वे की पटरी पर सो रहा है।
या तप्ति रास्तो पर से चलके आरहा है ।
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